Thursday, September 27, 2012
स्व.आयुवान सिंह शेखावत,हुडील: राजपूत और भविष्य : मौत के मुंह में -2
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Thursday, September 20, 2012
लेखिका - कमलेश चौहान ( गौरी)
All Rights Are Reserved ( Saat Janam Ke Baad)
माना की ये उस मालिक का दस्तूर है
कुछ पल सब कुछ है
कुछ पल देखो तो कुछ भी नहीं
कल जो दिल के करीब था , आज भी है
अब, सात समुद्र पार है
कल जो अपना था वो आज कहीं नहीं
आह ! हम बहक गए थे किसी के बातो से
कैसे कटेगी ज़िन्दगी
मत पूछो जिसकी हमें खबर नहीं
चाँद महका था अमावस की रातो के बाद
वोह कौनसी थी रात थी
मुझसे मत पूछो अब कुछ याद नहीं
उसने न जाने अनेको नाम लिख दिए थे
अपने दिल पे
मेरा नाम याद रहे ,यह जरूरी तो नहीं
दो रोज़ का हसना हसाना ,गुनगुनाना
हसीं वादियों में
अब वोह सर्द राते परायी है मेरी नहीं
भूली बिसरी यादो , दिल मे बसेरा मत करो
वोह जो निकला बेवफा
उस दोस्त का नाम उसका नाम दुहराना कोई ज़रूरी नहीं
Any Manipulation of Exploitation will creates Leagal Action Of this Poem as its Copy Rights @ Kamlesh Chauhan
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