ये चाँद आज फिर निकला है यु सज धज के
मुहबत का जिक्र हो शायद हाथो की लकीरों मे
याद दिलाता है मुझे एक अनजान राही की
याद दिलाता है उन मुहबत भरी बातो की
टूट कर चाहा इक रात दिल ने एक बेगाने को
कबूल कर लिया था उसकी रस भरी बातो को
वोह पास हो कर भी दूर है मुझ से
दूर होकर भी कितने करीब है दिल के
उनको देखने के लिये ये नैन कितने प्यासे थे
उनको देखने की चाह मे हम दूर तक गए थे
डूब जाते है चश्मे नाज़ मे उनका कहना था
जिंदगी कर दी हमारे नाम उनका ये दावा था
आज चाँद फिर निकला बन ठन कर
चांदनी का नूर छलका हो यु ज़मीं पर
याद आयी नाखुदा आज फिर शब्-ए-गम की
मदभरी,मदहोश,रिश्ता-ए-उल्फ़ते,शबे दराज की
नैनो मे खो गए थे नैन कुछ ऐसे उस रात
छु लिया यूँ करीब हो कर खुल गया हर राज़
२
आज पूरण माशी का चाँद फिर निकला
सवाल करता है आपसे आज दिल मेरा
मेरे चाँद
तोड़ कर खिलोनो की तरह यह दिल
किसके सहारे छोड़ देते हो यह दिल
अगर वायदे निभा नहीं सकते थे तुम
जिंदगी का सफ़र न कर सकते थे तुम
कियों आवाज दी इस मासूम दिल को
कियों कर दस्तक देते हो इस दिल को
मत खेलो इस दिल से मेरे हजूर
मत छीनो मेरी आँखों का नूर
हमारा तो पहला पहला प्यार है
आँखों मे तुम्हारा ही खुमार है
हर रोज तुम्हारा ही इंतजार है
दिन रात दिल रोये जार जार है
या तो हमें सफ़र मे साथ लेलो
या फिर अपनी तरह
हमें भी खुद को भुलाना सीखा दो
जीना सिखा दो मरना सिखा दो
अभी तो ज़िन्दगी एक इल्जाम है
बिन तुम्हारे सुनी दुनिया
हमारा तो संसार ही बेजार है
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Monday, November 2, 2009
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