Friday, November 30, 2018

बीते यौवन की याद आयी , वतन तेरी याद बहुत आयी: लेखिका कमलेश चौहान (गौरी )

बीते यौवन की याद  आयी , वतन तेरी   याद बहुत  आयी


लेखिका  कमलेश चौहान 
(गौरी ) 

 न जाने  क्यूँ वतन तो  दूर  मैं छोड़ आयी। 
यू लगा जैसे  मैं अपना वजुद छोड़ आयी। 

कुछ गलीया  कुछ मोहल्ले  बदले बदले से थे ,
नज़रे जिन्हे  ढूंढ  रही थी , वह न जाने कहा थे ?

  वो  कोयल का गान मीठी मीठी बांसुरी की  धुन  ,
वो चहकना चिड़ियों का कहां हो चूका  है गुम 

कानो में गूंजती रही  सावन की  बूंदो की बौछार 
घर के सामने लगे पेड़ पर रस्सी के झूले की पुकार। 

किस नगरी में  जा बसी , मेरे  मासुम बचपन की सहेलिया ,
यु ही  बिना मतलब हसना , मनचलों से करना अठखेलीया

एक एक हस्ते यौवन की बात  जब याद आती है मुझे 
रात रात भर तब  बीते यौवन की याद रुलाती है मुझे 

बीते यौवन की याद  आयी , वतन तेरी   याद बहुत  आयी 
हाय ! वह अस्वार्थी रिश्तेदारी , दोस्तों की दोस्ती याद आयी। 

कॉपी राइट @ कमलेश चौहान ( गौरी)