Monday, November 2, 2009

ये चाँद आज फिर निकला है यु सज धज के
मुहबत का जिक्र हो शायद हाथो की लकीरों मे

याद दिलाता है मुझे एक अनजान राही की
याद दिलाता है उन मुहबत भरी बातो की

टूट कर चाहा इक रात दिल ने एक बेगाने को
कबूल कर लिया था उसकी रस भरी बातो को


वोह पास हो कर भी दूर है मुझ से
दूर होकर भी कितने करीब है दिल के

उनको देखने के लिये ये नैन कितने प्यासे थे
उनको देखने की चाह मे हम दूर तक गए थे

डूब जाते है चश्मे नाज़ मे उनका कहना था
जिंदगी कर दी हमारे नाम उनका ये दावा था

आज चाँद फिर निकला बन ठन कर
चांदनी का नूर छलका हो यु ज़मीं पर

याद आयी नाखुदा आज फिर शब्-ए-गम की
मदभरी,मदहोश,रिश्ता-ए-उल्फ़ते,शबे दराज की

नैनो मे खो गए थे नैन कुछ ऐसे उस रात
छु लिया यूँ करीब हो कर खुल गया हर राज़


आज पूरण माशी का चाँद फिर निकला
सवाल करता है आपसे आज दिल मेरा
मेरे चाँद

तोड़ कर खिलोनो की तरह यह दिल
किसके सहारे छोड़ देते हो यह दिल

अगर वायदे निभा नहीं सकते थे तुम
जिंदगी का सफ़र न कर सकते थे तुम

कियों आवाज दी इस मासूम दिल को
कियों कर दस्तक देते हो इस दिल को

मत खेलो इस दिल से मेरे हजूर
मत छीनो मेरी आँखों का नूर

हमारा तो पहला पहला प्यार है
आँखों मे तुम्हारा ही खुमार है

हर रोज तुम्हारा ही इंतजार है
दिन रात दिल रोये जार जार है

या तो हमें सफ़र मे साथ लेलो
या फिर अपनी तरह
हमें भी खुद को भुलाना सीखा दो
जीना सिखा दो मरना सिखा दो

अभी तो ज़िन्दगी एक इल्जाम है
बिन तुम्हारे सुनी दुनिया
हमारा तो संसार ही बेजार है

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1 comment:

  1. Title is : Chand Phir Nikla
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