वोह कश्मीर की वादिया, वोह ठंडी हवाए
वोह झील के मंजर वोह महकती फिजाए
सदियों तक तेरी मीठी याद की गुलामी करती रही
तेरी यादो नै बांध के रखा, संगदिल; मै उलझी रही
ना जाने कॉलेज के एक बगीचे मै खामोश खड़ी थी
तू जाते जाते रुका तेरी चेहरे पर मस्त ख़ुशी सी थी
मेरी जुल्फों को कभी मैकदा और काली घटा कहा था
मेरी झुकी नज़रो से मे ना जाने तू क्या खोज रहा था
मै़ने तुमसे नज़ारे भी ना मिलायी बस बुत बनी खड़ी रही
तुम मेरे पास आये लेकिन अपनी जुबा ना खोली थी
बरसते भीगते मौसम मे आज भी धुवा उठता है
तरसती आँखों मे आज भी एक नज़ारा बसता है
सदियों तक तेरी याद के सहारे बैठी रही
निगाह दूर तक तेरी राह आज भी देखती रही
भूली बिसरी यादो में तेरी परछाईया कभी उभर आती है
वक़त की धुल से यादो की राहो से साँझ साँस लेती है
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कॉपी राईट कमलेश चौहान २००९ प्रति जी की हिंदी महीने के लिये
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भूली बिसरी यादो में तेरी परछाईया कभी उभर आती है
ReplyDeleteवक्त की धुल से यादो की राहो से साँझ साँस लेती है
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति
Great.
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