Monday, March 22, 2010

...हम रूठना भूल गये--- लेखक: कमलेश चौहान---2005

सदियों तक तेरी मीठी याद की गुलामी करती रही
तेरी यादो नै बांध के रखा, संगदिल; में उलझी रही

ना जाने कॉलेज के एक बगीचे में खामोश खड़ी थी
तू जाते जाते रुका तेरी चेहरे पर मस्त ख़ुशी सी थी

मेरी जुल्फों को कभी मैकदा और काली घटा कहा था
मेरी झुकी नज़रो से मे ना जाने तू क्या खोज रहा था

मै़ने तुमसे नज़ारे भी ना मिलायी बस बुत बनी खड़ी रही
तुम मेरे पास आऐ लेकिन अपनी जुबा ना खोली थी

बरसते भीगते मौसम मे आज भी धुवा उठता है
तरसती आँखों मे आज भी एक नज़ारा बसता है

सदियों तक तेरी याद के सहारे बैठी रही
निगाह दूर तक तेरी राह सदियों देखती रही

खो गए वोह लम्हे रह गया द्शते-जुनू-परवर वहा
ना जाने तू मेरी दुनिया, ना जाने तेरी बसती है कहाँ


all rights reserved @ Kamlesh Chauhan 2009






Written about 6 months ago · Comment ·LikeUnlikeUmesh Bawa Arora, Neeraj हर मौसम आया हर मौसम गया
हम भूले ना आज तक कोई बात
हम भूले ना तेरा पियार
दिल ने माना तुम्हे ही दिलदार
तेरा हमारे रूठने पे यह कहना

भल्ला लगता है तेरा मिजाज़ चुलबला
जब हमारा किसी से बात करना
सुना करते थे तुमसे ही तुम्हारे दिल का डरना
हम पूछते थे कियों करते हो हमारे प्रेम पे शक
जवाब था तुम्हारा भरोसा है मुझ पर
नहीं करता मेरे दिल नादाँ पे कोई शक

लेकिन यु आपका हमारे आजाद पंछी दिल को कैद करना
हमारा दिल समझ न सका आपका इस कदर दीवाना होना
जब आई तुम्हारी बारी पराये लोगों से यु खुल कर बात करना
हम सोचते आप भी सीख जायोंगे प्रेम दोस्ती मे अंतर करना
हम खुश होते तुम सीख रहे हो गैरो से दोस्ती करना
हमारे दिल की कदर करोगे क्या होता है समाजिक होना
यह क्या हुआ यह कै़से रुख बदला तुमने अपना

गैरो की बातो मे हकीकत पाई तुमने हमारी वफ़ा भूल गए
मौसम भी कुछ वक़त लेता है बदलने में
सर्दी गर्मी घडी लेती है रुत बदलने में
यह किस कदर रास्ता हमारा भूल गए

इतनी जल्द कियों रंग बदल गया तुम्हारा
नियत ने बदसूरत किया चेहरा तुम्हारा
हम बैठे रहे दहलीज़ पर तेरी इंतजार मे
बिखरा दिये राहो की बेदादगरी ने
जो फूल बिखारे थे मेरे हाथो ने

जब रूठ कर माँगा हमने अपना हक
बरसा दिये तुमने अंगार भरे लफ्ज़
आंखे रोई पर ना सोयी रात भर
तेरी ख़ुशी पे भटका था मेरा सफ़र

वोह नज़र बरस जाती थी हमारी याद में
अब ज़हर है कैसा तुम्हारी उस नज़र मे
वोह तुम ना थे जो आंसू चुराए तन्हाई के
मालूम ना था बरस गया है धुआ कब से

तेरी बेरुखी से यह अशक निलाम हो गये
मेरे अशकों से तेरी यादो के दिये बुझ गये
तुझे क्या पता औ बेवफा अंग है बर्फ मेरे
ना आयुंगी कभी तेरे दर पे बुलाने तुझे

तेरी राहो से अब काफिले दूर हो गये
कौन करे दुवा तेरे मिलने की
हम रूठना भूल गये
Written by: Kamlesh Chauhan copy right 2005
this composition is in form of story and poetry.Please nothing should be exploited or manipulated. allrights reserved .

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