Monday, October 12, 2009

वोह लम्हे :

सदियों तक तेरी मीठी याद की गुलामी करती रही
तेरी यादो नै बांध के रखा, संगदिल; में उलझी रही

ना जाने कॉलेज के एक बगीचे में खामोश खड़ी थी
तू जाते जाते रुका तेरी चेहरे पर मस्त ख़ुशी सी थी

मेरी जुल्फों को कभी मैकदा और काली घटा कहा था
मेरी झुकी नज़रो से ना जाने तू क्या खोज रहा था

मै़ने तुमसे नज़ारे भी ना मिलायी बस बुत बनी खड़ी रही
तुम मेरे पास आऐ लेकिन अपनी जुबा ना खोली थी

बरसते भीगते मौसम मे आज भी धुवा उठता है
तरसती आँखों मे आज भी एक नज़ारा बसता है

सदियों तक तेरी याद के सहारे बैठी रही
निगाह दूर तक तेरी राह सदियों देखती रही

खो गए वोह लम्हे रह गया द्शते-जुनू-परवर वहा
ना जाने तू मेरी दुनिया, ना जाने तेरी बसती है कहाँ


all rights reserved @ Kamlesh Chauhan 2009

3 comments:

  1. From Face Book Buddy: Umesh Bawa Arora:

    AroraUr words are always so deeply written, Kamlesh~~really touches my soul~~~
    IS HASEEN ZINDAGI KE DO ROOP KYUON HAI~~~
    EK PAL MEIN KUSHI TO DOOSRI AUR GHAM KYOUN HAI~~~
    BEETE LAMHON KO THAMNE KI KWASHISH LIYE JEETE HOON~~~
    PAR HUMESHA YEH WAQT CHALTA KYUON HAI~~~ CHAHAT HAI MUJHE APANI ZINDGAI SE BADI~~~...

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  2. मेरी जुल्फों को कभी मैकदा और काली घटा कहा था
    मेरी झुकी नज़रो से ना जाने तू क्या खोज रहा था

    bahut khub

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  3. Shukriya Mr Ratan Singh. Aap jo Jaipur or Rajputs logo kai liyae kar rahe ho woh bhi ek shub kaam hai. Rajputo ko apni man maryada nahi bhulani chahiyae

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